अध्याय 21

मजिस्ट्रेट द्वारा समन-मामलों की सुनवाई

244.                    अभियोग का सार कथन किया जाना - जब किसी समन मामले में अभियुक्त मजिस्ट्रेट के समक्ष उपस्थित होता है या लाया जाता है, तब उस अपराध का विवरण, जिसका उस पर आरोप है, उसे कथन किया जाएगा और उससे पूछा जाएगा कि क्या वह दोषी होने का अभिवचन करता है या उसके पास कोई बचाव प्रस्तुत करने को है, किन्तु औपचारिक आरोप विरचित करना आवश्यक नहीं होगा:

परंतु यदि मजिस्ट्रेट आरोप को निराधार समझता है तो वह लिखित में कारण अभिलिखित करने के पश्चात अभियुक्त को रिहा कर देगा और ऐसी रिहाई उन्मोचन के समान प्रभाव रखेगी।

245.                    दोषी होने के अभिवचन पर दोषसिद्धि - यदि अभियुक्त दोषी होने का अभिवचन करता है, तो मजिस्ट्रेट अभिवचन को यथासंभव अभियुक्त द्वारा प्रयुक्त शब्दों में अभिलिखित करेगा और अपने विवेकानुसार, उसके आधार पर उसे दोषसिद्ध कर सकेगा।

246.                    मामलों में अभियुक्त की अनुपस्थिति में दोषी होने के अभिवचन पर दोषसिद्धि .-- ( 1 ) जहां धारा 229 के अधीन समन जारी किया गया है और अभियुक्त मजिस्ट्रेट के समक्ष उपस्थित हुए बिना आरोप में दोषी होने का अभिवचन करना चाहता है, वहां वह मजिस्ट्रेट को डाक या संदेशवाहक द्वारा एक पत्र भेजेगा जिसमें उसका अभिवचन होगा और समन में विनिर्दिष्ट जुर्माने की रकम भी होगी।

( 2 ) मजिस्ट्रेट अपने विवेकानुसार अभियुक्त को उसकी अनुपस्थिति में, उसके दोषी होने के अभिवाक पर दोषी ठहरा सकता है तथा उसे समन में विनिर्दिष्ट जुर्माना अदा करने का दण्ड दे सकता है और अभियुक्त द्वारा प्रेषित की गई रकम उस जुर्माने में समायोजित कर ली जाएगी या जहां अभियुक्त द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत कोई अधिवक्ता अभियुक्त की ओर से दोषी होने का अभिवाक करता है, वहां मजिस्ट्रेट अभिवाक को यथासंभव अधिवक्ता द्वारा प्रयुक्त शब्दों में अभिलिखित करेगा तथा अपने विवेकानुसार अभियुक्त को ऐसे अभिवाक पर दोषी ठहरा सकता है तथा उसे पूर्वोक्त रूप से दण्ड दे सकता है।

247.                    दोषसिद्ध न होने पर प्रक्रिया .-- ( 1 ) यदि मजिस्ट्रेट अभियुक्त को धारा 275 या धारा 276 के अधीन दोषसिद्ध नहीं करता है, तो मजिस्ट्रेट अभियोजन पक्ष की सुनवाई करेगा और ऐसे सभी साक्ष्य लेगा जो अभियोजन पक्ष के समर्थन में पेश किए जा सकते हैं, तथा अभियुक्त की भी सुनवाई करेगा और ऐसे सभी साक्ष्य लेगा जो वह अपनी प्रतिरक्षा में पेश करता है।

(2)    मजिस्ट्रेट, यदि वह ठीक समझे, अभियोजन पक्ष या अभियुक्त के आवेदन पर, किसी गवाह को सम्मन जारी कर सकता है जिसमें उसे उपस्थित होने या कोई दस्तावेज या अन्य चीज पेश करने का निर्देश दिया गया हो।

(3)    मजिस्ट्रेट, ऐसे आवेदन पर किसी गवाह को बुलाने से पहले, यह अपेक्षा कर सकता है कि विचारण के प्रयोजनों के लिए उपस्थित होने में गवाह द्वारा किए गए उचित व्यय को न्यायालय में जमा करा दिया जाए।

248.                    दोषमुक्ति या दोषसिद्धि .-- ( 1 ) यदि मजिस्ट्रेट धारा 277 में निर्दिष्ट साक्ष्य और ऐसे अतिरिक्त साक्ष्य को, यदि कोई हो, जिसे वह स्वप्रेरणा से पेश करवाए, लेने पर पाता है कि अभियुक्त दोषी नहीं है तो वह दोषमुक्ति का आदेश अभिलिखित करेगा।

(2)    जहां मजिस्ट्रेट धारा 364 या धारा 401 के उपबंधों के अनुसार कार्यवाही नहीं करता है, वहां यदि वह अभियुक्त को दोषी पाता है तो वह विधि के अनुसार उस पर दंडादेश पारित करेगा।

(3)    कोई मजिस्ट्रेट, धारा 275 या धारा 278 के अधीन, अभियुक्त को इस अध्याय के अधीन विचारणीय किसी अपराध के लिए दोषसिद्ध कर सकता है, जो स्वीकृत या साबित तथ्यों से उसके द्वारा किया हुआ प्रतीत होता है, चाहे परिवाद या समन की प्रकृति कुछ भी हो, यदि मजिस्ट्रेट का यह समाधान हो जाता है कि उससे अभियुक्त पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा।

249.                    शिकायतकर्ता की गैर-हाजिरी या मृत्यु .--( 1 ) यदि शिकायत पर समन जारी किया गया है, और अभियुक्त की उपस्थिति के लिए नियत दिन, या उसके बाद के किसी दिन, जिसके लिए सुनवाई स्थगित की जा सकती है, शिकायतकर्ता उपस्थित नहीं होता है, तो मजिस्ट्रेट, शिकायतकर्ता को उपस्थित होने के लिए तीस दिन का समय देने के पश्चात्, इसमें इसके पूर्व किसी बात के होते हुए भी, अभियुक्त को दोषमुक्त कर देगा, जब तक कि किसी कारण से वह मामले की सुनवाई किसी अन्य दिन के लिए स्थगित करना उचित न समझे:

परन्तु जहां परिवादी का प्रतिनिधित्व किसी अधिवक्ता या अभियोजन अधिकारी द्वारा किया जाता है या जहां मजिस्ट्रेट की यह राय है कि परिवादी की व्यक्तिगत उपस्थिति आवश्यक नहीं है, वहां मजिस्ट्रेट उसकी उपस्थिति से छूट दे सकता है और मामले में कार्यवाही कर सकता है।

( 2 ) उपधारा ( 1 ) के उपबंध, जहां तक हो सके, उन मामलों में भी लागू होंगे जहां शिकायतकर्ता की अनुपस्थिति उसकी मृत्यु के कारण हुई हो।

250.                    शिकायत वापस लेना - यदि कोई शिकायतकर्ता, इस अध्याय के अधीन किसी मामले में अंतिम आदेश पारित किए जाने के पूर्व किसी भी समय मजिस्ट्रेट का समाधान कर देता है कि अभियुक्त के विरुद्ध, या यदि एक से अधिक अभियुक्त हों तो उन सभी या उनमें से किसी के विरुद्ध अपनी शिकायत वापस लेने की अनुज्ञा देने के लिए पर्याप्त आधार हैं, तो मजिस्ट्रेट उसे शिकायत वापस लेने की अनुज्ञा दे सकेगा और तब उस अभियुक्त को दोषमुक्त कर देगा जिसके विरुद्ध शिकायत इस प्रकार वापस ली गई है।

251.                    कुछ मामलों में कार्यवाही रोकने की शक्ति । - शिकायत के अलावा अन्यथा संस्थित किसी समन मामले में, प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट या मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की पूर्व मंजूरी से कोई अन्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, उसके द्वारा अभिलिखित किए जाने वाले कारणों से, कोई निर्णय सुनाए बिना किसी भी प्रक्रम पर कार्यवाही रोक सकता है और जहां कार्यवाही का ऐसा रोका जाना मुख्य साक्षियों के साक्ष्य अभिलिखित किए जाने के पश्चात किया जाता है, वहां दोषमुक्ति का निर्णय सुना सकता है और किसी अन्य मामले में अभियुक्त को रिहा कर सकता है और ऐसी रिहाई का उन्मोचन प्रभाव होगा।

समन -मामलों को वारंट-मामलों में परिवर्तित करने की न्यायालय की शक्ति - जब छह मास से अधिक अवधि के कारावास से दंडनीय अपराध से संबंधित समन-मामले के विचारण के दौरान मजिस्ट्रेट को यह प्रतीत होता है कि न्याय के हित में, अपराध का विचारण वारंट-मामलों के विचारण की प्रक्रिया के अनुसार किया जाना चाहिए, तो ऐसा मजिस्ट्रेट वारंट-मामलों के विचारण के लिए इस संहिता द्वारा प्रदान की गई रीति से मामले की पुनः सुनवाई कर सकता है और किसी ऐसे साक्षी को पुनः बुला सकता है जिसकी परीक्षा हो चुकी हो।